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			 बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-1 आहार, पोषण एवं स्वच्छता बीए सेमेस्टर-1 आहार, पोषण एवं स्वच्छतासरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 आहार, पोषण एवं स्वच्छता
'वसा’- सामान्य परिचय
हमारे आहार के छह अनिवार्य पोषक तत्त्वों में वसा का भी महत्त्वपूर्ण स्थान है। वसा प्रकृति से प्राप्त उन भोज्य-तत्त्वों के समूह को कहते हैं, जो पानी में अघुलनशीनल होते हैं, चिकनापन लिए होते हैं तथा विभिन्न कार्बनिक द्रवों में घुलनशील होते हैं। ये भोज्य-तत्त्व जन्तु तथा वनस्पति दोनों माध्यमों से प्राप्त होते हैं। तेल व वसा वनस्पति तथा जन्तु दोनों ही स्त्रोतों से प्राप्त होते हैं। कुछ ऐसे यौगिक भी होते हैं, जो मूलतः वसा नहीं होते, परन्तु देखने में बहुत कुछ वसा जैसे ही लगते हैं। इन सभी वसा से मिलते-जुलते पदार्थों को लिपिड्स कहा जाता है।
प्राय: कार्बोहाइड्रेट्स की अपेक्षा वसा दुगुनी मात्रा से भी ज्यादा ऊर्जा उत्पन्न करती है। कार्बोहाइड्रेट के 1 ग्राम से जहाँ 4 कैलोरी ऊर्जा प्राप्त होती है, वहीं एक ग्राम वसा से 9 कैलोरी ऊर्जा की प्राप्ति होती है।
वसा की प्राप्ति के प्रमुख स्रोत
वसा की प्राप्ति के स्रोत निम्न प्रकार है-
1. वनस्पति स्त्रोत - वानस्पतिक वसा अलसी, सरसों, मूँगफली, तिल, बिनौला आदि के तेलों तथा विभिन्न प्रकार के बीजों तथा सूखे मेवों में पायी जाती है। इसके अलावा कुछ अनाजों, सोयाबीन आदि में भी कुछ मात्रा में वसा पायी जाती है।
2. पशुजन्य स्रोत — इसके अन्तर्गत, दूध से बने उत्पाद, दूध, मांस, अण्डा, मछली, अण्डे की जर्दी आदि भोज्य पदार्थ आते हैं।
वसा की अधिकता से होने वाले प्रभाव
चिकित्साशास्त्र के अध्ययनों से यह ज्ञात हो चुका है कि यदि व्यक्ति के आहार में जरूरत से ज्यादा मात्रा में संतृप्त वसा का समावेश होता है तो उस स्थिति में धीरे-धीरे वसा की एक पर्त रक्त धमनियों में जमने लगती है। जैसे-जैसे यह पर्त बढ़ती है, वैसे-वैसे रक्त धमनियों का स्थान संकरा होने लगता है। इस स्थिति में रक्त परिवहन सुचारु रूप से नहीं हो पाता। इस असामान्य स्थिति को एथीरोस्कलोरोसिस कहते हैं। यह स्थिति शरीर एवं स्वास्थ्य के लिए प्रतिकूल होती है। इसके अलावा यदि हमारे आहार में निरन्तर वसा की अधिक मात्रा रहती है तो रक्त में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा बढ़ जाती है। इसके परिणामस्वरूप कोरोनरी हृदय आक्रमण तथा पक्षाघात की आशंका बढ़ जाती है। यह घातक भी हो सकता है।
वसा की कमी से होने वाले प्रभाव
सर्वप्रथम यदि बाल्यावस्था एवं किशोरावस्था में आहार में वसा की कमी हो तो शारीरिक वृद्धि अवरुद्ध हो जाती है। वसा की कमी के परिणामस्वरूप व्यक्ति की त्वचा में भी कुछ विकार आने लगते हैं। ऐसे में प्रायः त्वचा खुरदरी हो जाता है तथा उसमें स्थान-स्थान पर दरारें - सी पड़ने लगती हैं। शरीर में वसा की कमी से पैरों में सूजन भी आ जाती है। वसा की कमी का एक अन्य दृष्टिकोण से शरीर एवं स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। कुछ विटामिन केवल वसा में ही घुलनशील होते हैं। यदि शरीर में वसा की कमी होती है तो उस स्थिति में शरीर में वसा घुलित विटामिनों का अवशोषण नहीं हो पाता अतः शरीर में इन विटामिनों की भी कमी होने लगती है। शरीर में विटामिनों की कमी के कारण कुछ अभावजनित रोग भी उत्पन्न होने लगते हैं। शरीर में वसा की कमी के कारण व्यक्ति की ऊर्जा सम्बन्धी आवश्यकता की पूर्ति नहीं हो पाती तथा व्यक्ति की चुस्ती एवं स्फूर्ति घटने लगती है। ऐसे में व्यक्ति शीघ्र ही थकान अनुभव करने लगता है तथा उसकी परिश्रम करने की क्षमता घट जाती है। इस प्रकार स्पष्ट है कि वसा की कमी का शरीर एवं स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव ही पड़ता है।
						
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